
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगे ग्राम फंदा के अमरोदा में एक किसान के घर बार्न आउल (खलिहान उल्लू) का एक जोड़ा घायल अवस्था में मिला। उसे तत्काल किसान की मदद से वन विहार पहुंचाया गया, जहां विशेषज्ञ डॉक्टर की निगरानी में उनका इलाज चल रहा है। घटना शनिवार की है। अमरोदा निवासी किसान सोनू मेवाड़ा के पुराने घर की दीवार गिर गई थी, वह उसे ठीक करवाने के लिए वहां पहुंचे तो उन्हें अजीबोगरीब आवाजें सुनाई दीं। पहले तो वह डर गए, लेकिन अंदर जाने पर देखा तो वहां बार्न आउल का एक जोड़ा था। यह जोड़ा घायल था। इस पर सोनू ने जागरूकता दिखाते हुए इन पक्षियों को बचाने की ठानी और बिना कुछ सोचे समझे उनका इलाज करवाने में जुट गया। पहले तो उसने ग्रामीणों की मदद से ऐसे लोगों से संपर्क किया जो टोने-टोटके करते हैं, लेकिन उसे सफलता नहीं मिला।
दरअसल, ग्रामीणों में उल्लू को लेकर कई प्रकार की भ्रांतियां हैं। नाखून, दांत, हड्डियां तक टोने टोटके में इस्तेमाल कर कई तांत्रिक ग्रामीणों से मोटी रकम ऐंठते हैं। इसके बाद उसने फंदा ग्राम के किसान सफर अली को जानकारी दी। सफर भोपाल में वन्यजीव संरक्षण का कार्य करने वाले डॉ.जफर को जानता था। उसने तत्काल उन्हें यह सूचना दी। डॉ.जफर रविवार को वहां पहुंचे और इस जोड़े को लाकर वन विहार पहुंचाया। जहां डॉ. अतुल गुप्ता की निगरानी में उनका इलाज हो रहा है। जल्द ही यह बार्न आउल जोड़ा उड़ान भरेगा। वन विहार के पूर्व सहायक संचालक डॉ. सुदेश वाघमारे ने बताया कि इस प्रजाति का उल्लू जोड़ा एक साल में 25 हजार चूहे खा सकता है।
कई देशों में चूहे एवं रेप्टाइल को कंट्रोल करने के लिए वहां की सरकारें नागरिकों को प्रोत्साहन राशि देकर इन्हें पालने के लिए जागरुक करती हैं। यह किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले चूहे एवं अन्य रेंगने वाले जीवों को अपना भोजन बनाता है। इसका मुंह देखने में पान के आकार या दिल के आकार का दिखाई देता है। यह तकरीबन पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। ज्ञात हो कि उल्लू पक्षी की दुनिया भर में 216 प्रजातियां हैं। इनमें 16 बार्न आउल होते हैं। यह अपना घर नहीं बनाता। इंसानों द्वारा बनाई गई संरचनाओं, टॉवरों या पुराने घरों में अपने अंडे देता है। किसानों के सबसे बड़े मित्र हैं, लेकिन किसानों द्वारा कीटनाशक के उपयोग ने इनके जीवन को संकट में डाल दिया है। यह अभी संकटग्रस्त प्रजाति की सूची में नहीं हैं, लेकिन तेजी से कम हो रहे हैं।
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