
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पाकिस्तानी बहन चाहती है कि उनहें नोबल पुरस्कार मिले। पिछले 24 साल से मोदी को राखी बांधती आ रही कमर मोहसिन शेख का मानना है कि मोदी दुनिया में शांति व विकास के लिए अहम कदम उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी जब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक और बाद में भाजपा कार्यकर्ता के रूप में गुजरात में काम करते थे, तब कमर जहां ने उन्हें राखी बांधते हुए उनके राज्य का मुख्यमंत्री बनने की दुआ की थी। तब मोदी ने हंसते हुए कहा कि उन्हें कार्यकर्ता ही रहने दें राज काज उन्हें रास नहीं आता है। गुजरात की राजनीति का पहिया ऐसा घूमा कि विपरीत हालात में भाजपा को बचाने के लिए मोदी को राज्य की कमान संभालनी पड़ी और मोदी ने अपने ही अंदाज में राज्य के विकास को गति दी। कमर जहां बताती हैं कि एक रक्षा बंधन पर उन्होंने राखी बांधते हुए उनके लिए देश का प्रधानमंत्री बनने की दुआ की, तो मोदी मुस्कुराने लगे।
कमर जहां मूल रूप से कराची से हैं, वे अपने परिवार के साथ सालों पहले अहमदाबाद में आकर बस गई थीं। इस रक्षा बंधन पर कमर जहां ने पीएम मोदी के लिए नोबल पुरस्कार की दुआ की है, उनका मानना है कि जब सच्चे दिल से से दुआ की जाए, तो जरूर पूरी होती है। मोदी आतंकवाद, भ्रष्टाचार, गरीबी जैसी समस्याओं को खत्म करने के लिए जूझ रहे हैं, देश व दुनिया के कल्याण के लिए उन्हें नोबल पुरसकार मिलना ही चाहिए।
अगस्त 1981 में भारत आई थीं कमर जहां :- प्रधानमंत्री मोदी की पाकिस्तानी बहन का नाम कमर जहां है। उनके पति मोहसिन शेख अंतराष्ट्रीय स्तर पर ख्यातनाम आर्टिस्ट हैं। 23 अगस्त 1981 को मोहसिन से विवाह के बाद ही कमर जहां अहमदाबाद आई। इनके पुत्र सुफियान शेख अंतरराष्ट्रीय स्तर के तैराक हैं, तेन्जिंग नेशनल एडवेंचर अवॉर्ड, लिम्का बुक ऑफ अवॉर्ड व इंगलिश चैनल को पार करने का रिकॉर्ड है। सुफियान पर्सियन, मेक्सिको खाड़ी सहित अरब सागर, नॉर्थ समुद्र, अटलांटिक, पेसिफिक, मेडीटेरेनियन, एंड्रियाटिक, इंडियन सी, ईस्ट एशिया और चाइना सी में तैर चुके भारत के अकेले तैराक हैं।
पाकिस्तान में बसे भाईयों से मिलने को तरसी :- भारत पाकिस्तान के बीच वर्ष 1971 के युद्ध के बाद सिंध के चेल्लार गांव से आकर गुजरात के कच्छ, बनासकांठा, पाटण में आकर बसी कई बहनें ऐसी हैं, जो अपने भाईयों को राखी बांधने के लिए पाक नहीं जा सकती हैं। थराद के शिवनगर में बसे दो हजार परिवारों की कई बहनें राखी के दिन अपने भाईयों की कलाई पर राखी नहीं बांध सकती हैं। लीला शंकरलाल पुरोहित ने कई दशक से अपने पीयर नहीं गई। दुर्गाबेन त्रिवेदी, जीवाबेन पुरोहित ऐसी कई महिलाएं हैं, जो भाई का चेहरा देखने को तरस जाती हैं। 1978 में उन्हें भारत की नागरिकता मिल गई तथा अब वे यहीं स्थाई हो चुके हैं, पाकिस्तान उन्हें वीजा नहीं देता है इसलिए वे अपनी भाईयों से नहीं मिल सकती हैं।
No comments:
Post a comment