
देश में खाद्य तेल का आयात कम करने के लिए सरकार नेशनल तिलहन मिशन पर काम कर रही है। इसके तहत आयात पर शुल्क के साथ उपकर लगाने की तैयारी चल रही है। देश में फिलहाल मलेशिया, इंडोनेशिया और अन्य आसियान देशों से पाम तेल के आयात पर 40 प्रतिशत शुल्क लगता है। मलेशिया से आयातित रिफाइंड पाम तेल पर 45 प्रतिशत और इंडोनेशिया या आसियान के अन्य सदस्य देशों से खरीदने पर 50 फीसदी शुल्क की व्यवस्था है। अन्य देशों से आयात पर 44-54 प्रतिशत की रेंज में शुल्क लगाया जाता है।
खाद्य तेल की घरेलू खपत सालाना 2.5 करोड़ टन के आसपास है। इसमें से लगभग 1.5 करोड़ टन का आयात किया जाता है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने बजट में तिलहन उत्पादन के मामले में देश को आत्मनिर्भर बनाने का आह्वान किया था। देश के विकास से जुड़े महत्वपूर्ण मसलों पर सचिव समूह (जीओएस) बनाया गया है, जो तेल आयात कम करने के लिए देशभर में मिशन शुरू करने की तैयारी कर रहा है। इस मिशन की फंडिंग के लिए सरकार कू्रड और रिफाइंड खाद्य तेल के आयात पर 2-10 फीसदी तक उपकर लगा सकती है।
फंड की योजना ठंडे बस्ते में: तिलहन मिशन के लिए 10,000 करोड़ रुपए के फंड की योजना बनाई गई थी, लेकिन अब जीओएस आयात पर अपकर लगाकर फंड जुटाने पर विचार किया जा रहा है। तिलहन उद्योग चाहता है कि सरकार बड़ी मात्रा में खाद्य तेल आयात से मिलने वाले शुल्क से एक फंड तैयार करे । सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक बीवी मेहता के मुताबिक सरकार शुल्क से सालाना 30,000 करोड़ रुपए कमाती है। इस सेक्टर को बढ़ावा देने के लिए सरकार को शुल्क से होने वाली से 5,000-10,000 करोड़ रुपए का फंड बनाना चाहिए।
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