
सरकारी बैंकों के फंसे कर्ज (एनपीए) को वसूलने के लिए सरकार की कोशिशों के नतीजे दिखायी देने लगे हैं। चालू वित्त वर्ष के शुरुआती तीन महीनों में ही छह सरकारी बैंकों के सकल एनपीए में भारी कमी आयी है। सरकार का कहना है कि इस अवधि में इन बैंकों के एनपीए में 4,464 करो़ड़ रुपये की कमी आयी।
केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने शुक्रवार को एक सवाल के लिखित जवाब में लोकसभा को बताया कि छह बैंकों बैंक ऑफ बड़ौदा, बैंक ऑफ इंडिया, केनरा बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, इंडियन ओवरसीज बैंक, ओरियंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और विजया बैंक की सकल एनपीए राशि में 31 मार्च 2018 के मुकाबले 31 जुलाई 2018 को 4,464 करो़ड़ रुपये की कमी आयी है।
यह कमी ऐसे समय आयी है जब मोदी सरकार ने हाल के वर्षों में बैंकों के छिपे हुए एनपीए को सामने लाने और उसे वसूलने के लिए कई उपाय किए हैं। शुक्ला ने लोकसभा को यह भी बताया कि 31 मार्च 2008 को बैंकों द्वारा दिए गए कुल कर्ज की राशि 25.03 लाख करोड़ रुपये थी जो 31 मार्च 2014 को बढ़कर 68.75 लाख करोड़ रुपये हो गयी।
आरबीआइ के अनुसार बैंकों द्वारा बढ़-चढ़कर लोन देने, लोन से संबंधित फ्रॉड होने और कुछ मामलों में भ्रष्टाचार होने के चलते बैंकों के बकाया कर्ज की यह राशि इस स्तर पर पहुंची। इसके बाद 2015 में बैंकों के लोन खातों की पड़ताल के लिए असेट क्वालिटी रिव्यू की गई जिसमें एनपीए का उच्च स्तर सामने आया। यही वजह है कि सरकारी बैंकों के एनपीए की राशि 31 मार्च 2018 को बढ़कर 8,45,475 करोड़ रुपये हो गयी जबकि 31 मार्च 2014 को यह 2,16,739 करोड़ रुपये थी।
उल्लेखनीय है कि सरकार ने बैंकों के फंसे कर्ज की राशि को वसूलने और उनका पूंजी आधार मजबूत बनाने के लिए हाल के वर्षों में कई कदम उठाए हैं। दिवालियेपन पर नया कानून भी इसी का नतीजा है। इस कानून के जरिये अब तक बैंकों के फंसे कर्ज की लगभग 83,000 करोड़ रुपये की राशि वसूली जा चुकी है। बहुत सी कंपनियों ने तो अपनी चल-अचल संपत्ति बेचकर बैंकों का पैसा वापस करने की पहल की है। यह कानून भी बैंकों के फंसे कर्ज की राशि को वसूलने में बेहद प्रभावी साबित हो रहा है। इसके साथ ही सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बड़ी राशि रिकैपिटलाइजेशन के रूप में दी है।
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