
सूत्र बताते हैं कि मध्यप्रदेश के दिग्गजों में कुछ नीतिगत समझौते हुए हैं। फ्रंट लाइन पर प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ही रहेंगे। उनके अलावा कार्यकारी अध्यक्ष जीतू पटवारी छापामार लड़ाई करते नजर आएंगे। उनको प्रदेश भर में युवक कांग्रेस और किसानों के साथ मिलकर शिवराज सरकार की नाक में दम कर देने वाले आंदोलन करने का जिम्मा सौंपा गया है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह पर्दे के पीछे रहकर कमलनाथ के लिए रणनीतियां तैयार करेंगे। जबकि कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत पर्दे के पीछे रहते हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए काम करेंगे।
राजनीति के जानकार बताते हैं कि दिग्विजय सिंह के खिलाफ माहौल तो 1998 में ही बन गया था लेकिन भाजपा बिखरी हुई थी। उसके पास कोई रणनीति नहीं थी। वो दिग्विजय सिंह पर संगठित हमले नहीं कर पाई और उसका कोई चेहरा नहीं था इसलिए भाजपा हार गई। 2003 में भाजपा ने योजनाबद्ध तरीके से काम किया। इस बार कांग्रेस भी वैसा ही कर रही है। भाजपा ने 'अनिल माधव दवे' जैसे सूझबूझ वाले नेता को रणनीति का काम सौंपा था। कमलनाथ ने कांग्रेस के चाणक्य को यह जिम्मेदारी दी है। भाजपा में फ्रंट लाइन के नेताओं के पास प्लानिंग थी और जबर्दस्त बैकअप मिल रहा था। इस बार कांग्रेस ने भी ऐसा ही किया है। फ्रंट लाइन पर जितने भी नेता भेजे जाएंगे, उनका बैक आॅफिस पहले तैयार कर दिया जाएगा। ताकि कोई पार्टी लाइन से बाहर ना जाए।
राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर का कहना है कि कमलनाथ प्रदेश की राजनीति में वरिष्ठतम नेताओं में हैं, उनकी राजनीतिक हैसियत है, इसके अलावा पार्टी हाईकमान ने जो अधिकार दिए हैं, उसका उपयोग करना वे जानते हैं। यही कारण है कि उन्होंने किसी भी नेता को पार्टी से बड़ा नहीं बनने दिया। मनमर्जी से यात्रा, दौरे करने की अनुमति नहीं दी। उन्होंने कहा कि अब तक जो अध्यक्ष बने, उन्हें कई नेता नजरअंदाज करते रहे और स्वयं को पीसीसी से ऊपर बताते रहे, नतीजतन सब बेलगाम थे, मगर अब ऐसा नहीं हो रहा है।
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