
विश्व में भारत नम भूमि वाली झीलों के लिए मशहूर है। विश्व पटल पर चिल्का झील के पुर्नउद्धार के लिए देश को रामसर संरक्षण अवार्ड भी दिया गया और भोपाल की बड़ी झील के संरक्षण के लिए भी भूरी-भूरी प्रशंसा की गई थी। नम भूमि वाली झीलों को संरक्षित करने 1971 में ईरान के शहर रामसर में हुए सम्मेलन में देश की 26 झीलों को रामसर साइट चुना गया था, जिसमें भोपाल की बड़ी झील भी शामिल है। पर्यावरण विशेषज्ञ कहते हैं की यह बड़े दुख की बात है की 47 सालों में रामसर साइट के नाम का एक बोर्ड भी झील के किनारे कहीं दिखाई नहीं देता। इससे झील संरक्षण में लगी संस्थाओं पर प्रश्न चिन्ह लग रहा है।
नर्मदा और बड़ी झील पर किताब लिख रहे ओडिशा के पर्यावरणविद् अशोक कुमार बिसवाल कहते हैं बड़ी झील ईको फ्रेंडली है और इसकी जैव विविधता जीवनदायनी है। इसके संरक्षण के लिए प्रशासन की सभी संस्थाओं- नगर निगम, झील संरक्षण प्रकोष्ठ, भोजवेटलैंड और आसपास के रहवासियों को साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। यहां आने वाले प्रवासी और स्थानीय पक्षियों की संख्या को देखते हुए इसे बर्ड सेंचुरी बनाना चाहिए। प्रशासन इन दिनों यहां गहरीकरण करा रहा है जो प्रसंशनीय कार्य है। इसे बड़े पैमाने पर उचित जगह किया जाना चाहिए। इससे निकलने वाली गाद को खेतों में डलवाना चाहिए। इसमें बड़ी उर्वरक क्षमता है।
श्री बिसवाले ने बताया कि बड़ी झील में मैंने उच्च गुणवत्ता वाली जैव विविधता देखी है। उन्होंने बताया कि झील किनारे जगह-जगह रामसर साइट के बोर्ड लगाकर झील की उपयोगिता और संरक्षण के बारे में संदेश लिखे जाने चाहिए । विश्व भर में मनाया जाने वाला जैव विविधता दिवस दुनिया में स्वच्छ जलवायु को बनाए रखने के चिंतन का ही दिन है।
जागरूकता कार्यक्रम चलाने की जरूरत
पक्षियों पर पीएचडी कर चुकीं और बांबे नेच्युरल हिस्ट्री सोसायटी की मप्र कोआर्डिनेटर डॉ. संगीता राजगीर के अनुसार भोजवेटलैंड और इसके आसपास लगभग 210 पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती हैं । इस वर्ष यहां लगभग 700 की तादाद में कई प्रवासी पक्षी जो हजारों किलोमीटर दूर से हिमालय पार कर आए हैं। इसलिए इसे संरक्षित क्षेत्र घोषित होना चाहिए। सारस क्रेन के संरक्षण के लिए चलाए जा रहे हमारे अभियान से गांवों में जागरूकता बढ़ी है। ग्रामीण अब इनका शिकार नहीं करने देते। इस सीजन में इतनी बड़ी संख्या आए सारस क्रेन ने साबित कर दिया है की बड़ी झील जैव विविधता में श्रेष्ठ है। इनके संरक्षण के लिए प्रशासन को निर्णय लेकर शीघ्र कदम उठाए जाने चाहिए। लोगों को रामसर साइट के बारे में बताने के लिए जागरूकता कार्यक्रम खास तौर से झील किनारे स्थित गांवों में चलाया जाना चाहिए
No comments:
Post a comment