
मार्च 2016 में विश्व सांस्कृतिक महोत्सव आयोजित करने के कारण यमुना डूब क्षेत्र को हुए नुकसान के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ने श्री श्री रविशंकर के संगठन आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन (एओएल) को जिम्मेदार ठहराया है. आर्ट ऑफ लिविंग एनजीटी के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाएगा.
अधिकरण के अध्यक्ष न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ ने हालांकि एओएल पर पर्यावरण मुआवजा बढ़ाने से इनकार किया. पीठ ने कहा कि उसके द्वारा पहले जमा कराए गए पांच करोड़ रुपये का इस्तेमाल डूब क्षेत्र में पूर्व स्थिति की बहाली के लिए किया जाएगा.
विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट के आधार पर पीठ ने यमुना डूब क्षेत्र के नुकसान के लिए एओएल को जिम्मेदार ठहराया. पीठ में न्यायमूर्ति जे रहीम और विशेषज्ञ सदस्य बीएस सजवान भी शामिल थे. पीठ ने दिल्ली विकास प्राधिकार को निर्देश दिया कि वह डूब क्षेत्र को हुए नुकसान और विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों के अनुसार उसे बहाल करने में आने वाले खर्च का आकलन करे.
पीठ ने कहा कि अगर नुकसान को दुरुस्त करने में आने वाला खर्च पांच करोड़ रुपये से ज्यादा होता है तो उसे एओएल से वसूल किया जाएगा. उसने कहा कि अगर लागत पांच करोड़ रुपये से कम आती है तो शेष राशि फाउंडेशन को वापस कर दी जाएगी. पीठ ने कहा कि यमुना के डूब क्षेत्र का इस्तेमाल किसी ऐसी गतिविधि के लिए नहीं होनी चाहिए जिससे पर्यावरण को नुकसान हो.
पीठ ने हालांकि यह फैसला करने से इनकार कर दिया कि क्या एओएल यमुना तट पर समारोह आयोजित करने के लिए अधिकृत था या नहीं. पीठ ने कहा कि यह उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है. अधिकरण ने यमुना तट को बचाने के अपने कर्तव्य का पालन करने में नाकाम रहने के लिए डीडीए की खिंचाई की लेकिन उसने कोई पेनाल्टी नहीं लगाई. फैसला सुनाए जाने के पहले बताया गया कि विगत में मामले की सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति आरएस राठौड़ ने खुद को पीठ से अलग कर लिया है.
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