
मोहम्मद अली जिन्ना ने जब अपने से 24 साल छोटी और 16 साल की रूटी से
मुंबई में कोर्ट मैरिज की तो पूरे देश में बवाल और नाराजगी जैसे हालात बन
गए. परंपराओं में रहने वाला भारतीय समाज ये कतई नहीं पचा पाया.
रूटी
के करोड़पति पिता इस शादी के घोर खिलाफ थे. रूटी मुंबई की अभिजात्य वर्ग की
पार्टियों की शान थीं, जिन्ना के स्वाभाव से एकदम उलट. दोनों की प्रेम
कहानी अजीब ही है. फिर उसमें विवाह के कुछ सालों बाद आया खालीपन भी. जिसके
चलते रूटी ने खुद को ड्रग्स के हवाले कर दिया. बहुत कम उम्र में उनका निधन
हो गया
वह 16 साल की फैशनेबल, बला की हसीन, शोख और प्रखर दिमाग वाली
किशोरी थीं. मुंबई के करोड़पति पारसी सर दिनशॉ पेतित की इकलौती वारिस. जबकि
जिन्ना 40 साल के बैरिस्टर, जो लंदन से आने के बाद मुंबई में पहचान बना
रहे थे. राजनीतिक क्षेत्र में भी हस्ती के रूप में उभर रहे थे.
वह
अक्सर क्लब जाया करते थे, दिनशॉ उनके मुवक्किल थे. क्लब में मुलाकातें होती
थीं. जब दिनशॉ को सपरिवार दार्जिलिंग घूमने जाने का मन हुआ तो उन्होंने
मित्र बन चुके मोहम्मद अली जिन्ना को भी निमंत्रण दे दिया.
महिलाओं से दूर रहने वाले
जिन्ना
मुंबई के क्लब में और अभिजात्य सर्कल में नियमित मौजूद जरूर रहते थे.
लेकिन कम बोलने वाले और महिलाओं से दूर रहने वाले शख्स थे. लोगों की नजर
में आत्मकेंद्रित और कुछ हद तक रुखे लेकिन ऐसे वकील, जो अपना मुकदमा हारता
नहीं. निजी जिंदगी की बात करें तो गुजराती मुसलमान परिवार से ताल्लुकात
रखते थे. पिता ने व्यापार विदेशों तक फैला लिया था.
शादी अब मेरा रास्ता नहीं
16 साल की उम्र में 14
साल की एमिबाई से उनका विवाह हुआ. विवाह के चंद महीनों बाद ही उन्हें लंदन
में बैरिस्टर की पढाई करने भेज दिया. वही रहते हुए उन्हें अपनी पहली बीवी
की मृत्यु जानकारी मिली, जो वियोग और बीमारी में चल बसी थी.
इसके बाद
उन्होंने प्रण कर लिया था कि अब शादी नहीं करेंगे. बहन फातिमा ने कई बार
बड़े भाई का दिल टटोला. मनाया कि उन्हें शादी कर लेनी चाहिए लेकिन हर बार
रुखा जवाब होता था-शादी अब मेरा रास्ता नहीं है.
वो उन्हें अंकल कहती थी
ऐसे
जिन्ना जब दार्जिलिंग की हसीन वादियों में रुटी के साथ घूम रहे थे तो
दोनों में न जाने कैसे प्रेम के अंकुर फूटे. रूटी विद्रोही थीं, परंपराओं
के खिलाफ चलने वाली. अपने ही तरह की बेबाक युवती. रूटी भी उनके प्रति
आकर्षित हुईं. वो जिन्ना जिसके बारे में कहा जाता था कि महिलाओं और प्रेम
के मामले में हद दर्जे के शुष्क थे, न जाने कैसे उस युवती को दिल दे बैठे,
जो उन्हें अंकल कहती थी
गुस्से से लाल-पीले हो गए दिनशॉ
दार्जिलिंग में
ही एक बार रात के खाने के बाद जिन्ना ने सर दिनशॉ से सवाल किया कि दो
धर्मों के बीच शादी के बारे में आप की क्या राय है ?
रूटी के पिता ने
छूटते ही जवाब दिया कि इससे राष्ट्रीय एकता कायम करने में मदद मिलेगी.
जिन्ना ने तपाक से कहा, वह उनकी बेटी से शादी करना चाहते हैं. दिनशॉ गुस्से
से पागल हो गए. उन्होंने जिन्ना से उसी वक्त घर छोड़ देने के लिए कहा.
जिन्ना ने उन्हें खूब समझाने की कोशिश की लेकिन कर नहीं पाए.
दो साल इंतजार
पत्रकार
से लेखिका बनीं शीला रेड्डी की हाल में प्रकाशित किताब मिस्टर एंड मिसेज
जिन्नाः द मैरिज दैट शॉक इंडिया में जिन्ना और रूटी के विवाह और फिर दोनों
में आई दूरियों के बारे में विस्तार से लिखा है.
जिन्ना की पेशकश के
बाद दिनशॉ ने बेटी से कहा, वह अब कभी जिन्ना से नहीं मिलेगी. लेकिन बेटी भी
कम जिद्दी नहीं थी. उसने कहा-वह शादी करेगी तो जिन्ना के ही साथ. रूटी पर
पाबंदी लगा दी गई. तब रुटी ने दो साल और इंतजार किया कि 18 साल की हो जाएं.
जिन्ना भी खामोशी से इंतजार करते रहे.
विवाह के बाद फासला
20
फ़रवरी, 1918 तो जब रूटी 18 साल की हुईं तो उन्होंने पिता का घर छोड़
दिया. जिन्ना रूटी को मुंबई की जामिया मस्जिद ले गए, जहां उन्होंने इस्लाम
कबूल किया. वह अब मरियम बाई बन गईं. 19 अप्रैल, 1918 को जिन्ना और रूटी का
निकाह हो गया.
ये उस जमाने में परंपरागत भारतीय समाज के लिए बहुत
बड़ा झटका थी. शादी के कुछ सालों तक तो दोनों एक दूसरे में डूबे रहे लेकिन
जिन्ना की व्यस्तता और उम्र का फासला दूरियां लाने लगा. जिन्ना पाबंदियां
लगाने की कोशिश करते और रूटी एक झटके में उसे तोड़ देतीं.
रूटी का इंतकाल
घरेलू
विवाद की वजह से रूटी बहुत ज्यादा नशा करने लगीं. जिसकी वजह से उनकी तबीयत
इतनी बिगड़ी कि इलाज के लिए लंदन शिफ्ट करना पड़ा. इलाज कराकर वापस लौटीं
रूटी ताज होटल में रहने लगीं. 20 फरवरी 1929 को रूटी का 30वां जन्मदिन था.
इसी दिन शाम को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
तब जिन्ना का चेहरा तन गया
रूटी के विद्रोही
स्वाभाव के कई किस्से मशहूर हैं. शीला रेड्डी की किताब में जिक्र है कि
रूटी तब पांच महीने की गर्भवती थीं. जिन्ना उन्हें घर पर ही रहने की हिदायत
देकर मुंबई के टाउन हाल आए थे. रूटी कहां मानने वाली. किसी तरह वह टाउन
हाल की बालकनी तक पहुंच गईं.
बांबे के पुलिस कमिश्नर विंसेंट की सभा
थी. वह बालकनी से अंग्रेजी में चीखीं. फिर अंग्रेजी में जो भाषण दिया, उससे
हर कोई प्रभावित हो गया. उन्होंने कहा, हम गुलाम नहीं हैं. वह पुलिस
कमिश्नर की ओर मुखातिब हुईं, मिस्टर विंसेंट, आपको कोई अधिकार नहीं है कि
मुझको लेक्चर देने से रोकें, क्योंकि बंबई का नागरिक होने के नाते मुझे भी
बोलने का अधिकार है.
आप कुछ भी कर सकते हैं लेकिन मैं यहां से हिलने
वाली भी नहीं. रुटी बोलती रहीं, लोग सुनते रहे. फिर वह आराम से टाउनहाल की
सीढियों पर बैठकर सिगरेट से कश लगाने लगीं. जिन्ना का चेहरा तनाव से भिंच
गया.
एक बेटी
ऐसा कई बार हुआ. अक्सर ये भी
होता था कि वह मुंबई में कहीं जाते थे तो लोग उनसे श्रीमती जिन्ना की तारीफ
करते थे. भावविहीन चेहरा लिए जिन्ना इसे सुन लेते. ये सही है कि धीरे धीरे
जिन्ना ने अपनी खूबसूरत और जवान बीवी में दिलचस्पी लेनी बिल्कुल बंद कर
दी. रूटी से उन्हें एक बेटी हुई.
बेटी ने भी की बगावत
बेटी
को नाम दिया गया डिनो, जिसने पिता से बगावत करके नुस्ली वाडिया के पिता से
शादी की. जिन्ना चाहते थे कि बेटी उनकी मर्जी से निकाह करे. बेटी भी कहां
मानने वाली. तब पिता जिन्ना ने कसम खाई कि वो बेटी से ताउम्र रिश्ता नहीं
रखेंगे. ऐसा हुआ भी. बेटी भी उनके साथ पाकिस्तान जाने की बजाए भारत में
रही. वह तभी पाकिस्तान गई जब उनका इंतकाल हुआ
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